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दि॒वश्चि॒दा पू॒र्व्या जाय॑माना॒ वि जागृ॑विर्वि॒दथे॑ श॒स्यमा॑ना। भ॒द्रा वस्त्रा॒ण्यर्जु॑ना॒ वसा॑ना॒ सेयम॒स्मे स॑न॒जा पित्र्या॒ धीः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

divaś cid ā pūrvyā jāyamānā vi jāgṛvir vidathe śasyamānā | bhadrā vastrāṇy arjunā vasānā seyam asme sanajā pitryā dhīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दि॒वः। चि॒त्। आ। पू॒र्व्या। जाय॑माना। वि। जागृ॑विः। वि॒दथे॑ शस्यमा॑ना। भ॒द्रा। व॒स्त्रा॒णि। अर्जु॑ना। वसा॑ना। सा। इ॒यम्। अ॒स्मे इति॑। स॒न॒ऽजा। पित्र्या॑। धीः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:39» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अस्मे) हम लोगों में (दिवः) विज्ञान के प्रकाश से (जायमाना) उत्पन्न हुई (पूर्व्या) प्राचीन विद्वानों से सिद्ध की गई (विदथे) विज्ञान के बढ़ानेवाले व्यवहार में (जागृविः) जागनेवाली (शस्यमाना) स्तुति की जाती और (भद्रा) धारण करने योग्य और कल्याणकारक (अर्जुना) सुन्दररूपयुक्त (वस्त्राणि) वस्त्रों को (वसाना) ओढ़ती हुई सुन्दर स्त्री के तुल्य (सनजा) विभाग से प्रसिद्ध (पित्र्या) वा पितरों में प्रकट हुई (धीः) उत्तम बुद्धि (वि) विशेषता से उत्पन्न होती (सा, इयम्) सो यह आप लोगों में (चित्, आ) भी सब ओर से उत्पन्न होवें ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वे ही श्रेष्ठ पुरुष हैं, जो कि अपने आत्मा के तुल्य सम्पूर्ण जनों में बुद्धि आदि पदार्थों को उत्पन्न कराने को उद्यत होवें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या याऽस्मे दिवो जायमाना पूर्व्या विदथे जागृविः शस्यमाना भद्राऽर्जुना वस्त्राणि वसाना सुन्दरी स्त्रीव सनजा पित्र्या धीर्विजायते सेयं युष्मासु चिदा जायताम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवः) विज्ञानप्रकाशात् (चित्) अपि (आ) (पूर्व्या) पूर्वैर्विद्वद्भिर्निष्पादिता (जायमाना) (वि) (जागृविः) जागरूका (विदथे) विज्ञानवर्द्धके व्यवहारे (शस्यमाना) स्तूयमाना (भद्रा) सेवनीयानि कल्याणकराणि (वस्त्राणि) (अर्जुना) सुरूपाणि। अर्जुनमिति रूपना०। निघं० ३। १७। (वसाना) धारयन्ती (सा) (इयम्) (अस्मे) अस्मासु (सनजा) सनेन विभागेन जाता (पित्र्या) पितृषु भवा (धीः) प्रज्ञा ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। त एवाप्ताः पुरुषा येष्वात्मवत्सर्वेषु बुद्ध्यादिपदार्थान् जनयितुमुद्यताः स्युः ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे स्वतःच्या आत्म्याप्रमाणे सर्वांमध्ये बुद्धी इत्यादी निर्माण करण्यास तत्पर असतात तेच आप्त पुरुष असतात. ॥ २ ॥